चल देहूँ जग छोड़के संगी
चल देहूँ जग छोड़के संगी करलेहू सुरता मोर
जीयत मरत ले मोर संग मा बँधे रहे मया के डोर
तुँहरे संग मा खेलेंव कुदेंव तुँहरे संग मा बाढ़ेंव
बनके आज माटी के लोंदा ये भुँइया मा माढ़ेंव
जुड़ अमरइय्या नदिया के तीर मा करहूँ मँयह हिलोर
जीयत मरत ले मोर संग मा बाँधे रहू मया के डोर
चंदा बरन मोर गीत चमकही चारो मुड़ा बगरही
कविता उही सूरूज बरोबर सबके आँखी उघरही
बनके चिरइय्या फूदकत रहूँ घर अंगना गली खोर
जीयत मरत ले मोर संग मा बँधे रहे मया के डोर
हँसी खुशी मा जिनगी बिताहू हावय मोर बिनती
चार दिन के मिले हे जिनगी हावय यहू हा गिनती
बनके "दिनकर" चमकत रहिहँव गाँव गली चहूँ ओर
जीयत मरत ले मोर संग मा बँधे रहे मया के डोर
रचनाकार
तोषण चुरेन्द्र "दिनकर"
धनगांव डौंडी लोहारा बालोद छत्तीसगढ़
रचना दिनाँक 03/12/2021 शुक्रवार
आप बहुत ही सराहनीय कार्य कहैरे जी आपको आपको बहुत-बहुत धन्यवा
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