दिनांक १७-०१-२२
सोमवार चित्राभिव्यक्ति
विधा स्वैच्छिक
दान धर्म करते रहिए,यही जगत से नाता है।
जो देता है दान सभी को,सब कुछ मग पे पाता है।
हर घर से जब दान मिले है,
दौलत का भंडार यहां।
रानी कृपा करे जो,ऐसा भारत भूमि कहां।
है परब छेरछेरा साथी,सब अन्नदान है करना।
लेना देना परमपरा है,सुख दुख नित सबका हरना।
तोषण कुमार चुरेन्द्र
धनगांव डौंडीलोहारा.