संतोष ....
जीवन के रहस्य
संतोष अपन दाई ददा के एकलौता बेटा । तीन झन बहिनी ल ननपन ले लालन पालन करत सियानदाई संग गरीबी म जिनगी चलावत राहय।
दाई ददा मन गरीबी के चलत परदेश खटत राहय।बारवीं पढ़त रिहिस संतोष ह तभे महतारी के तबियत खराब होय के चलत अचरा के छंइहा घलो चारो भाई बहिनी के मूड़ी ले छूटगे। ददा समारू के मन ह घलो उदास होगे।एकड़ भर खेती मा जिनगी चलत राहय ।
दिन बीते लगिस तब सियान मन कहिनी ले समारू अपन बेटा संतोष के बिहाव बर सोच के संतोष के बिहाव चित्रा संग करदिस। बिहाव होय के बाद घर ह सुघर अकन सुखपूर्वक चलत राहय ।
बछर दू बछर बीते के बाद भगवान के आशीष ले संतोष के घर एक झन टूरा जनम आईस जेकर नांव डमरू । समय बीते लगिस फेर परिवार के हालत जइसने के तइसने।तभो ले भगवान के आशीर्वाद ले तीनों बहिनी के बिहाव घलक रचागे।बहिनी मन अपन अपन ससुराल मा अपन अपन लोग लइका अउ परिवार संग सुघर जिनगी बितावत हे।
कई बछर बीते के बाद संतोष गांव के अघुवा बनिस । कथे न सियान मन अच्छा काम करे बर चलबे त हजार मुसीबत आघू मा आथे। ए सब कठिनाई ला टारत जिनगी के कड़वा मीट्ठा स्वाद ल चिखत संतोष गांव के बिकास करे बर निकल पड़िस.....
तोषण कुमार चुरेन्द्र